मोर के पखौवनि को मुकुट छबीलौ छोरि,
क्रीट मनि-मंडित घराइ करिहैं कहा ।
कहै रतनाकर त्यौं माखन सनेही बिनु,
षट रस व्यंजन चबाइ करिहैं कहा ॥
गोपी ग्वाल बालनि कौं झोंकि बिरहानल मैं,
हरि सुर बृंद की बलाइ करिहैं कहा ।
प्यारौ नाम गोबिंद गुपाल कौ बिहाइ हाय,
ठाकुर त्रिलोक के कहाइ करिहैं कहा ॥9॥