भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नौ सपने / भाग 3 / अमृता प्रीतम
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:50, 8 मार्च 2010 का अवतरण
कच्चे गर्भ की उबकाई
एक उकताहट-सी आई
मथने के लिए बैठी तो लगा मक्खन हिला,
मैंने मटकी में हाथ डाला तो
सूरज का पेड़ निकला।
यह कैसा भोग था?
कैसा संयोग था?
और चढ़ते चैत
यह कैसा सपना?
... ... ...