रचनाकार: तेजेन्द्र शर्मा
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जो तुम न मानो मुझे अपना, हक तुम्हारा है
यहां जो आ गया इक बार, बस हमारा है
कहां कहां के परिन्दे, बसे हैं आ के यहाँ
सभी का दर्द मेरा दर्द, बस ख़ुदारा है
नदी की धार बहे आगे, मुड क़े न देखे
न समझो इसको भंवर अब यही किनारा है
जो छोड़ आये बहुत प्यार है तुम्हें उससे
बहे बयार जो, समझो न तुम, शरारा है
यह घर तुम्हारा है इसको न कहो बेगाना
मुझे तुम्हारा, तुम्हें अब मेरा सहारा है