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कालीबंगा: कुछ चित्र-12 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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ये चार ढेर
मिट्टी के
ढेर के बीचोबीच
नर कंकाल।
ढेर नहीं
चारपाई के पाये हैं
इस चारपाई पर
सो रहा था
कोई बटाउ
बाट जोहता
मनुहार की थाली की
मनुहार के हाथों से पहले
उतरी गर्द आकाश से
जो उठाई है
आज आपने
अपने हाथों
मगर सहेजे कौन?
राजस्थानी से अनुवाद : मदन गोपाल लढ़ा