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कालीबंगा: कुछ चित्र-14 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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ऊँचे
डूंगर सरीखे
थेहड़ तले
निकली थी हांडी
उसके नीचे
बचा हुआ था
उगने को हाँफ़ता बीज
नमी पाकर
कुछ ही दिनों में
फूट गया अंकुर
सामने देखकर
अनंत आकाश में
कद्रदान अन्न के।
राजस्थानी से अनुवाद : मदन गोपाल लढ़ा