भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कालीबंगा: कुछ चित्र-14 / ओम पुरोहित ‘कागद’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ऊँचे
डूंगर सरीखे
थेहड़ तले
निकली थी हांडी

उसके नीचे
बचा हुआ था
उगने को हाँफ़ता बीज

नमी पाकर
कुछ ही दिनों में
फूट गया अंकुर

सामने देखकर
अनंत आकाश में
कद्रदान अन्न के।


राजस्थानी से अनुवाद : मदन गोपाल लढ़ा