भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दीन भारतवर्ष / महादेवी वर्मा
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:11, 4 मार्च 2007 का अवतरण
लेखिका: महादेवी वर्मा
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~
सिरमौर सा तुझको रचा था
विश्व में करतार ने,
आकृष्ठ था सब को किया
तेरे, मधुर व्यवहार ने।
नव शिष्य तेरे मध्य भारत
नित्य आते थे चले,
जैसे सुमन की गंध से
अलिवृन्द आ-आकर मिले।
वह युग कहाँ अब खो गया वे देव वे देवी नहीं,
ऐसी परीक्षा भाग्य ने
किस देश की ली थी कहीं।
जिस कुंज वन में कोकिला के
गान सुनते थे भले,
रब है उलूकों का वहाँ
क्या भाग्य है अपने जले।
अवतार प्रभु लेते रहे
अवतार ले फिर आइए,
इस दीन भारतवर्ष को
फिर पुण्य भूमि बनाइए।
यह महादेवी जी के बचपन की रचना है।