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बगुला भगत / रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’
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बगुला भगत बना है कैसा ?
लगता एक तपस्वी जैसा ।।
अपनी धुन में अड़ा हुआ है ।
एक टाँग पर खड़ा हुआ है ।।
धवल दूध-सा उजला तन है ।
जिसमें बसता काला मन है ।।
मीनों के कुल का घाती है ।
नेता जी का यह नाती है ।।
बैठा यह तालाब किनारे ।
छिपी मछलियाँ डर के मारे ।।
पंख कभी यह नोच रहा है ।
आँख मूँद कर सोच रहा है ।।
मछली अगर नज़र आ जाए ।
मार झपट्टा यह खा जाए ।।
इसे देख धोखा मत खाना ।
यह ढोंगी है जाना-माना ।।