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सुनता हूँ रमजान माह का / सुमित्रानंदन पंत

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सुनता हूँ रमजान माह का
उदय हुआ अब पीला चाँद,
मदिरालय की गलियों में अब
फिर न सकूँगा कर फ़रियाद!
मैं जी भर शाबान महीने
पीलूँगा मदिरा इतनी,
पड़ा रहूँ अलमस्त ईद तक
रहे न रोज़ों की भी याद!