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बस / रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’
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बस में जाने में मुझको,
आनन्द बहुत आता है ।
खिड़की के नज़दीक बैठना,
मुझको बहुत सुहाता है ।।
पहले मैं विद्यालय में,
रिक्शा से आता-जाता था ।
रिक्शे-वाले की हालत पर,
तरस मुझे आता था ।।
लेकिन अब विद्यालय में,
इक नई-नवेली बस आई ।
पीले रंग वाली सुन्दर सी,
गाड़ी बच्चों ने पाई ।।
आगे हैं दो काले टायर,
पीछे लगे चार चक्के ।
बड़े ज़ोर से हार्न बजाती,
हो जाते हम भौंचक्के ।।
पढ़-लिख कर मैं खोलूँगा,
छोटे बच्चों का विद्यालय ।
अलख जगाऊँगा शिक्षा की,
पाऊँगा जीवन की लय ।।