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टोपी / रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’

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गंजापन ढकने को टोपी,
मेरे सिर पर रहती है ।
ठिठुरन से रक्षा करती हूँ ,
बार-बार यह कहती है ।।

देखो अपनी गाँधी टोपी,
सारे जग से न्यारी है ।
आन-बान भारत की है ये,
हमको लगती प्यारी है ।।

लालबहादुर और जवाहर जी ने,
इसको धार लिया ।
भारत का सिंहासन इनको,
टोपी ने उपहार दिया ।।

टोपी पहिन सुभाषचन्द्र,
लाखों में पहचाना जाता ।
टोपी वाले नेता का कद,
ऊँचा है माना जाता ।।
 
खादी की टोपी, धोती,
कुर्ते, की शान निराली है ।
बिना पढ़े ही ये पण्डित,
का मान दिलाने वाली है ।।
 
टोपी पहन सलामी,
अपने झण्डे को हम देते हैं ।
राष्ट्र हेतु मर-मिटने का प्रण,
हम खुश होकर लेते है ।।