भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आम रसीले भोले-भाले! / रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:34, 14 जून 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’ }} {{KKCatBaalKavita}} <poem> पकने को …)
पकने को तैयार खड़े हैं!
शाखाओं पर लदे पड़े हैं!!
झूमर बनकर लटक रहे हैं!
झूम-झूम कर मटक रहे हैं!!
कोई दशहरी कोई लँगड़ा!
फजरी कितना मोटा तगड़ा!!
बम्बइया की शान निराली!
तोतापरी बहुत मतवाली!!
कुछ गुलाब की खुशबू वाले!
आम रसीले भोले-भाले!!