भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
विद्यालय / रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:47, 14 जून 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’ }} {{KKCatBaalKavita}} <poem> बच्चों …)
बच्चों का ये है विद्यालय ।
विद्याओं का ये है आलय ।।
कितना सुन्दर सजा चमन है ।
रंग-बिरंगे यहाँ सुमन हैं ।।
कोरे काग़ज़ जैसे मन है ।
चहक रहा कानन-उपवन है ।।
हर बालक अमृत की गागर ।
भरा हुआ गागर में सागर ।।
रूप भिन्न हैं, वेश एक है ।
पन्थ भिन्न, परिवेश एक है ।।
विद्या जीवन का आधार ।
पढ़ना बालक का अधिकार ।।
श्रम से मंज़िल मिल जाती है ।
शिक्षा तप से ही आती है ।।
सामाजिकता को अपनाना है ।
प्रतिदिन विद्यालय जाना है ।।