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कल रात का चाँद / विजय कुमार पंत

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कल चाँद को देखा
आंगन में
उतरा था पीले चादर में
कुछ बादल काले
साथ लिए
कुछ तारे लिपटे थे
तन से
कुछ रौनक लेकर
मंद मंद
जैसे शीतल
मुस्कान लिए
कुछ धुंध अँधेरे में उसने
बाले थे कितने दीप नए
कुछ धीमे -धीमे
धुंवा -धुवां
उडाता था यौवन रातों को
कुछ गर्म हवा
छूं जाती थी
कुछ बातें करते
हाथों को
पीला प्रकाश
नीला प्रकाश
उजाला प्रकाश
गीला प्रकाश
ऐसे फैला मेरे उपर
मैं जलता रहा
अनल होकर