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सपनों का संसार / लावण्या शाह

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रचनाकार: लावण्या शाह

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अन्तर मनसे उपजी मधुर रागिनीयों सा,
होता है दम्पतियों का सुभग संसार ,
परस्पर, प्रीत, सदा सत्कार, हो साकार,
कुल वैभव से सिंचित, सुसंस्कार !
तब होता नहीँ, दूषित जीवन का,
कोई भी, लघु - गुरु, व्यवहार...

नहीं उठती दारुण व्यथा हृदय में,
बँधते हैं प्राणो से तब प्राण !
कौन देता नाम शिशु को ?
कौन भरता सौरभ भंडार ?
कौन सीखलाता रीत जगत की ?
कौन पढाता दुर्गम ये पाठ?

माता और पिता दोनों हैँ,
एक यान के दो आधार,
जिससे चलता रहता है,
जीवन का ये कारोबार !
सभी व्यवस्था पूर्ण रही तो,
स्वर्ग ना होगा क्या सँसार ?

ये धरती है इंसानों की,
नहीँ दिव्य, सारे उपचार!
एक दिया,सौ दीप जलाये,
प्रण लो, करो,आज,पुकार!
बदलेंगें हम, बदलेगा जग,
नहीं रहेंगे, हम लाचार!
कोरी बातों से नहीं सजेगा,
ये अपने सपनों का संसार।