हम चाहत हैं तुमको जिउ से
तुम नेकहू नाहिंनै बोलती हौ ।
यह मानहु जो 'हरिचंद' कहै
केहि हेत महाविष घोलती हौ ।
केहि हेत महाविष घोलती हौ ।
तुम औरन सों नित चाह करौ
हमसों हिअ गाँठ न खोलती हौ ।
इक नैन के डोर बँधी पुतरी तुम
नाचत औ जग डोलती हौ ।
हम चाहत हैं तुमको जिउ से
तुम नेकहू नाहिंनै बोलती हौ ।
यह मानहु जो 'हरिचंद' कहै
केहि हेत महाविष घोलती हौ ।
केहि हेत महाविष घोलती हौ ।
तुम औरन सों नित चाह करौ
हमसों हिअ गाँठ न खोलती हौ ।
इक नैन के डोर बँधी पुतरी तुम
नाचत औ जग डोलती हौ ।