भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हम चाहत हैं तुमको जिउ से / भारतेंदु हरिश्चंद्र

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:58, 10 जुलाई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भारतेंदु हरिश्चंद्र }} {{KKCatKavita‎}} <poem> हम चाहत हैं तुम…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हम चाहत हैं तुमको जिउ से
तुम नेकहू नाहिंनै बोलती हौ ।
यह मानहु जो 'हरिचंद' कहै
केहि हेत महाविष घोलती हौ ।
केहि हेत महाविष घोलती हौ ।
तुम औरन सों नित चाह करौ
हमसों हिअ गाँठ न खोलती हौ ।
इक नैन के डोर बँधी पुतरी तुम
नाचत औ जग डोलती हौ ।