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हम चाहत हैं तुमको जिउ से / भारतेंदु हरिश्चंद्र

हम चाहत हैं तुमको जिउ से
तुम नेकहू नाहिंनै बोलती हौ ।
यह मानहु जो 'हरिचंद' कहै
केहि हेत महाविष घोलती हौ ।
केहि हेत महाविष घोलती हौ ।
तुम औरन सों नित चाह करौ
हमसों हिअ गाँठ न खोलती हौ ।
इक नैन के डोर बँधी पुतरी तुम
नाचत औ जग डोलती हौ ।