भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आहत है स्वप्न का गगन / आनंद कुमार ‘गौरव’

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:34, 29 जुलाई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आनंद कुमार ‘गौरव’ }} {{KKCatNavgeet}} <poem> आहत है स्वप्न का ग…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आहत है स्वप्न का गगन
चेहरा है बिखरा काजल
 
हृदय नेह का सागर है
दृष्टि मेघमय गागर है
जब से चैतन्य मन हुआ
पल-पल जैसे चाकर है
चित्र में प्रविष्ट हो गया
बिन बरसे काला बादल
 
युग हुए न लौटे घर हम
हो गए छलावे मौसम
नून छिड़कती जख़्मों पर
सावनी सुरीली सरगम
सोच हो गई मधुशाला
चाहना रही गंगाजल