Last modified on 3 अगस्त 2010, at 20:43

काम करेगी उसकी धार / हस्तीमल 'हस्ती'

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:43, 3 अगस्त 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हस्तीमल 'हस्ती' }} {{KKCatGhazal‎}}‎ <poem> काम करेगी उसकी धार ब…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

काम करेगी उसकी धार
बाकी लोहा है बेकार

कैसे बच सकता था मैं
पीछे ठग थे आगे यार

बोरी भ्रर मेहनत पीसूँ
निकले इक मुट्ठी भर सार

भूखे को पकवान लगें
चटनी, रोटी, प्याज, अचार

जीवन है इक ऐसी डोर
गाठें जिसमें कई हजार

सारे तुगलक चुन-चुन कर
हमने बना ली है सरकार

शुक्र है राजा मान गया
दो दूनी होते हैं चार