भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
काम करेगी उसकी धार / हस्तीमल 'हस्ती'
Kavita Kosh से
काम करेगी उसकी धार
बाकी लोहा है बेकार
कैसे बच सकता था मैं
पीछे ठग थे आगे यार
बोरी भर मेहनत पीसूँ
निकले इक मुट्ठी भर सार
भूखे को पकवान लगें
चटनी, रोटी, प्याज, अचार
जीवन है इक ऐसी डोर
गाठें जिसमें कई हज़ार
सारे तुग़लक चुन-चुन कर
हमने बना ली है सरकार
शुक्र है राजा मान गया
दो दूनी होते हैं चार