भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पावन प्रतिज्ञा / गयाप्रसाद शुक्ल 'सनेही'
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:26, 21 अगस्त 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गयाप्रसाद शुक्ल 'सनेही' }} <poem> चरखे चलाएंगे, बनाएं…)
चरखे चलाएंगे, बनाएंगे स्वेदशी सूत
कपड़े बुनाएंगे, जुलाहों को जिलाएंगे
चाहेंगे न चमक-दमक चिर चारुताई
अपने बनाए उर लाय अपनाएंगे
पाएंगे पवित्र परिधान, पाप होंगे दूर
जब परदेशी-वस्त्र ज्वाला में जलाएंगे
गज़ी तनज़ेब ही सी देगी ज़ेब तन पर
गाढ़े में त्रिशूल अब नैन-सुख पाएंगे