उसे तो कोई अकरब काटता है / आदिल रशीद
उसे तो कोई अकरब<ref>निकटतम व्यक्ति</ref> काटता है
कुल्हाड़ा पेड़ को कब काटता है
जुदा जो गोश्त को नाख़ून से कर दे
वो मसलक<ref>धर्म</ref> हो के मशरब<ref>मज़हब</ref> काटता है
बहकने का नहीं इमकान<ref>उम्मीद</ref> कोई
अकीदा<ref>यकीन, विश्वास</ref> सारे करतब काटता है
कही जाती नहीं हैं जो ज़ुबाँ से
उन्ही बातों का मतलब काटता है
वो काटेगा नहीं है खौफ़ इसका
सितम ये है के बेढब काटता है
तू होता साथ तो कुछ बात होती
अकेला हूँ तो मनसब<ref>ओहदा</ref> काटता है
जहाँ तरजीह<ref>प्राथमिकता</ref> देते हैं वफ़ा को
ज़माने को वो मकतब<ref>स्कूल</ref> काटता है
उसे तुम ख़ून भी अपना पिला दो
मिले मौक़ा तो अकरब काटता है
ये माना साँप है ज़हरीला बेहद
मगर वो जब दबे तब काटता है
अलिफ़,बे० ते० सिखाई जिस को आदिल
मेरी बातों को वो अब काटता है