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सियासी उलट बाँसी / गिरीश चंद्र तिबाडी 'गिर्दा'

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पानी बिच मीन पियासी
खेतों में भूख उदासी
यह उलट बाँसियाँ नहीं कबीरा, खालिस चाल सियासी

पानी बिच मीन पियासी
लोहे का सर पाँव काठ के
बीस बरस में हुए साठ के
मेरे ग्राम निवासी कबीरा, झोपड़पट्टी वासी

पानी बिच मीन पियासी
सोया बच्चा गाए लोरी
पहरेदार करे है चोरी
जुर्म करे है न्याय निवारण, न्याय चढ़े है फाँसी

पानी बिच मीन पियासी
बंगले में जंगला लग जाए
जंगल में बंगला लग जाए
वन बिल ऐसा लागू होगा, मरे भले वनवासी

पानी बिच मीन पियासी
जो कमाय सो रहे फकीरा
बैठे–ठाले भरें जखीरा
भेद यही गहरा है कबीरा, दीखे बात ज़रा-सी

पानी बिच मीन पियासी