Last modified on 5 सितम्बर 2010, at 09:55

सतह के समर्थक समझदार निकले / शेरजंग गर्ग

Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:55, 5 सितम्बर 2010 का अवतरण

सतह के समर्थक समझदार निकले
जो गहरे में उतरे गुनहगार निकले

बड़ी शान-ओ-शौकत से अख़बार निकले
कि आधे-अधूरे समाचार निकले

ये जम्हूरियत के जमूरे बड़े ही
कलाकार निकले, मज़ेदार निकले

बिकाऊ बिकाऊ, नहीं कुछ टिकाऊ
मदरसे औ' मन्दिर भी बाज़ार निकले

किसी एक विरान सी रहगुज़र पर
फटे हाल मुफलिस वफादार निकले

गुलाबों कि दुनिया बसाने की क्वाहिश
लिए दिल में जंगल से हर बार निकले