सन्दर्भ खाड़ी युद्ध- मान्यवर / रामकृष्ण पांडेय
मान्यवर
आप ही सही हैं
और हम सब ग़लत हैं
आप कहें तो दिन है
आप कहें तो रात है
हमारी क्या बिसात है
हमारे जैसा आदमी तो
दासानुदास है
मान्यवर
आपके ही इशारे पर
घूमती है धरती
उगते हैं सूर्य-चन्द्र
हवा बहती है
समुद्र की लहरें उठती हैं, गिरती हैं
पहाड़ खड़े रहते हैं अविचल
आपकी ही ताबेदारी में
हाथ बाँधे, नतमस्तक, पंक्तिबद्ध हैं
देश-देश के शासनाध्यक्ष
मान्यवर
आप ही आप हैं
और आप क्या नहीं हैं
आप ही जगुआर हैं
आप ही पैट्रियट हैं
आप ही पर नाज़ है
आप ही हैं भोग-विलास
आप ही हैं महारास
आप ही हैं संयुक्त-राष्ट्र
आप ही हैं महात्रास
आप जहाँ बरसते हैं
आग ही बरसती है
बेचारी धरती
आदमीयत को तरसती है
मान्यवर
आपका निशाना अचूक है
सच कहूँ तो ख़ूब है
वहाँ गिरा है अस्पताल
वहाँ ध्वस्त स्कूल है
कहीं उठ रहा है धुआँ
कहीं लगी है आग
देखिए ना कैसा