सन्दर्भ खाड़ी युद्ध- मान्यवर / रामकृष्ण पांडेय
मान्यवर
आप ही सही हैं
और हम सब ग़लत हैं
आप कहें तो दिन है
आप कहें तो रात है
हमारी क्या बिसात है
हमारे जैसा आदमी तो
दासानुदास है
मान्यवर
आपके ही इशारे पर
घूमती है धरती
उगते हैं सूर्य-चन्द्र
हवा बहती है
समुद्र की लहरें उठती हैं, गिरती हैं
पहाड़ खड़े रहते हैं अविचल
आपकी ही ताबेदारी में
हाथ बाँधे, नतमस्तक, पंक्तिबद्ध हैं
देश-देश के शासनाध्यक्ष
मान्यवर
आप ही आप हैं
और आप क्या नहीं हैं
आप ही जगुआर हैं
आप ही पैट्रियट हैं
आप ही पर नाज़ है
आप ही हैं भोग-विलास
आप ही हैं महारास
आप ही हैं संयुक्त-राष्ट्र
आप ही हैं महात्रास
आप जहाँ बरसते हैं
आग ही बरसती है
बेचारी धरती
आदमीयत को तरसती है
मान्यवर
आपका निशाना अचूक है
सच कहूँ तो ख़ूब है
वहाँ गिरा है अस्पताल
वहाँ ध्वस्त स्कूल है
कहीं उठ रहा है धुआँ
कहीं लगी है आग
देखिए ना कैसा है कोलाहल
कैसी है भागमभाग
मान्यवर
इलेक्ट्रानिकी मामला है
कौन कहता है धरती शस्य श्यामला है
आज ही की बात है
कई सौ मारे गए
बंकर में छुपे थे
बिलों में जैसे चूहे
मान्यवर
बिखर गई है उनकी काया
वैसे तो दुनिया ही माया है
करमों का भोग था जिसका जैसा
उसने वैसा ही पाया है
किसी का हाथ यहाँ गिरा है
किसी का पैर वहाँ है
किसी का सिर्फ़ धड़ है
तो किसी का सिर्फ़ माथा
कोई है किसी की माँ-बहन
कोई है किसी का पिता, किसी का बेटा
कोई किसी का प्रेमी होगा
कोई होगी किसी की प्रियतमा
दोनों ने देखा होगा साथ-साथ
इसी दुनिया का एक हसीन सपना
मान्यवर
सब आपका ही प्रताप है
आपका ही आशीर्वाद है, अभिशाप है
किसी का कर्ज माफ़ कर दिया है
तो किसी को किया मालामाल है ?
जो भी आपके साथ है
उसी की ख़ुशियाँ हैं उसी का वसंत है
जो आपके साथ नहीं है
वही दुखी है उसका दुःख अनंत है
मान्यवर
सभी आपसे डरते हैं
थर-थर काँपते रहते हैं
कोई ताल ठोंक कर देता है आपका साथ
कोई मन ही मन मानत है आपका रोब-दाब
आप अगर कुछ ठानते हैं
उसे पूरा करके ही दूसरे मानते हैं
आप अगर होते हैं उदस
तो दूसरे रो देते हैं अनायास
आप मुस्कुराते हैं
तो दूसरे खिलखिलाते हैं
मान्यवर
आपने कहा युद्ध
सभी हो गए साथ सभी हो गए क्रुद्ध
सबने अपनी सेवाएँ अर्पित कीं
निष्ठा और भक्ति समर्पित की
किसी ने टैंक भेजा
किसी ने विमान
सभी ने सेनाएँ भेजीं
सभी ने भेजे अपने-अपने देश के जवान
छोड़ दी हैं सबने अपनी-अपनी आन-बान-शान
देखिए हुज़ूर हमने भी दिया ईंधन
नहीं सुना मानवता का क्रंदन
मान्यवर
किन्तु एक बात है
कहीं-कहीं प्रतिघात है
जगह-जगह निकल रहे हैं जुलूस
जगह-जगह हो रहे हैं प्रदर्शन
सरकार साथ है तो जनता ख़िलाफ़ है
हवा का रुख़ बदल रहा है
यह बात तो साफ़ है
नहीं मान रहे हैं लोग अपनी काबिलियत
आज भी बची हुई है आदमीयत