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देखा हुआ सा कुछ / निदा फ़ाज़ली
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देखा हुआ सा कुछ है
- तो सोचा हुआ सा कुछ
हर वक़्त मेरे साथ है
- उलझा हुआ सा कुछ
होता है यूँ भी रास्ता
- खुलता नहीं कहीं
जंगल-सा फैल जाता है
- खोया हुआ सा कुछ
साहिल की गीली रेत पर
- बच्चों के खेल-सा
हर लम्हा मुझ में बनता
- बिखरता हुआ सा कुछ
फ़ुर्सत ने आज घर को सजाया
- कुछ इस तरह
हर शय से मुस्कुराता है
- रोता हुआ सा कुछ
धुँधली-सी एक याद किसी
- क़ब्र का दिया
और! मेरे आस-पास
- चमकता हुआ सा कुछ
कभी-कभी यूँ भी हमने अपने जी को बहलाया है
जिन बातों को खुद नहीं समझे, औरों को समझाया है