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वे हिमालय से भी बड़े / रमा द्विवेदी

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रचनाकारः रमा द्विवेदी

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यूँ तो प्रहरी से खड़े हैं ये हिमालय हैं बड़े।
जो देश की रक्षा में अर्पित, वे हिमालय से भी बड़े॥

शब्द गा सकते नहीं,तेरे जीवन की कहानी,
देश के हित झोंक दी है, तूने पूरी ज़िन्दगानी,
देश का जन-जन रिणी है, छाँव में जो तेरी पले।
जो देश की रक्षा में अर्पित वे हिमालय से भी बड़े॥

तुझसे ही तो यहाँ की हर कली मुस्कायेगी,
तेरे बिन तो यहाँ की हर गली सो जायेगी,
तुम नहीं तो हम नहीं, तुम हर दुआओं से बड़े।
जो देश की रक्षा में अर्पित, वे हिमालय से भी बड़े॥

जल-थल-नभ में तेरा रुतबा, अरु तेरी ही शान है,
तुझसे अपनी आबरू है, अरु तुम्हीं से आन है,
तुम समन्दर अरु धरा, आकाश से भी तुम बड़े।
जो देश की रक्षा में अर्पित वे हिमालय से भी बड़े॥

यूं तो प्यारा झंडा हमारा,झुकता नहीं है यह कभी,
पर तेरे सम्मान में झुक जाता है यह हर कहीं,
करते नमन, शत-शत नमन, हर साँस में तू ही चले।
जो देश की रक्षा में अर्पित, वे हिमालय से भी बड़े॥