भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

यह शहर / यादवेंद्र शर्मा 'चंद्र'

Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:41, 14 अक्टूबर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: <poem>यह कौन-सा शहर है जहां मृत्यु अच्छे-ख़ूबसूरत खिलौनों जैसी यहां-…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यह कौन-सा शहर है
जहां मृत्यु
अच्छे-ख़ूबसूरत खिलौनों जैसी
यहां-वहां टंगी है
चेहरे पर
देवताओं-दैत्यों के मुखौटे
व्यर्थ वार्तालाप
फ़िजूल सवाल
सर्पों की मानिंद
बिलों में जाते हुए विचार ।
क्या मैं हो गया हूं चित्तभ्रष्ट
या फिर सूख गया है यह समुद्र
शांत और लहरों से रहित
इस तट पर
लगे हुए कई शिलालेख
ऊंघ रहे हैं।
उसी दरमियान
प्रेमी-प्रेमिका
महलों का उन्माद बिखेरते हैं
तो बेचारा यह शहर
निर्बल जनता को
सच के लिए
लटका देता है सूली पर
ईसा मसीह की तरह
सच्ची पुकार, झूठा गुनाह
चारों तरफ़ ख़ाकी अजगर
सांस लेते हुए बिखेरते हैं ज़हर ।
सच में यह शहर
ख़ुद ही से जूझता-लड़ता
हो चुका है घायल, बीमार ।

अनुवाद : नीरज दइया