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जाता हूँ / केदारनाथ अग्रवाल

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जाता हूँ
उत्तर से दक्षिण
दो बरसों के बाद;
मुझे बुलाता है ‘मदरास’,
बेटे और बहू-पोतों के पास।

जब पहुँचूँगा तब टूटेगा
यह मेरा सन्यास-
प्यार-प्यार के
इस भूखे का यह उपवास।

रचनाकाल: २५-०२-१९७८