Last modified on 17 अक्टूबर 2010, at 23:52

गाँव हो या शहर / केदारनाथ अग्रवाल

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:52, 17 अक्टूबर 2010 का अवतरण ("गाँव हो या शहर / केदारनाथ अग्रवाल" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite)))

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

गाँव हो या शहर
बचा कोई नहीं
दगहिल खराब होने से
तलातली पतन से।

हराम हो गया
सुबह से शाम तक जीना--
रात में सोना।

असम्भव हो गया
सुरक्षा की सड़कों पर
सुरक्षा से चलना।

किसी का चाकू
किसी के पेट में घुसा
और आदमी का चिराग
समय से पहले बुझा।

बढ़ते-बढ़ते
बेहद बढ़ गया गम
अराजकता नहीं हो पा रही कम।

रचनाकाल: २२-०२-१९७८