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जीवित चिड़िया सिसक रही है / केदारनाथ अग्रवाल

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अब भी कोई जीवित चिड़िया सिसक रही है
नील गगन के पखनों में
नील सिंधु के पानी में
मैं अब भी उस जीवित चिड़िया की सिसकन से
सिहर रहा हूँ
वह जीवित चिड़िया मनुष्य का अमर हृदय है।

रचनाकाल: १६-०७-१९६१