अब भी कोई जीवित चिड़िया सिसक रही है
नील गगन के पखनों में
नील सिंधु के पानी में
मैं अब भी उस जीवित चिड़िया की सिसकन से
सिहर रहा हूँ
वह जीवित चिड़िया मनुष्य का अमर हृदय है।
रचनाकाल: १६-०७-१९६१
अब भी कोई जीवित चिड़िया सिसक रही है
नील गगन के पखनों में
नील सिंधु के पानी में
मैं अब भी उस जीवित चिड़िया की सिसकन से
सिहर रहा हूँ
वह जीवित चिड़िया मनुष्य का अमर हृदय है।
रचनाकाल: १६-०७-१९६१