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एक चिड़िया उड़ गई है / केदारनाथ अग्रवाल

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एक चिड़िया उड़ गई है,
एक बैठी रह गई है
धार करुणा की उमड़कर
इस विजन में बह गई है।

रचनाकाल: ०३-१०-१९६१