भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गजल जिन्दगी के गवाए त देतीं / मनोज भावुक
Kavita Kosh से
Manojsinghbhawuk (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:14, 28 अक्टूबर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मनोज भावुक }} Category:ग़ज़ल <poem> गजल जिन्दगी के गवाए …)
गजल जिन्दगी के गवाए त देतीं
दिया साधना के बराए त देतीं
कहाँ माँगतानी महल, सोना, चानी
टुटलकी पलनिया छवाए त देतीं
कहाँ साफ लउकत बा केहू के सूरत
तलइया के पानी थिराए त देतीं
बा जाये के सभका, त हम कइसे बाँचब
मगर का ह जिनिगी, बुझाए त देतीं
रही ना गरीबी, गरीबे मिटाइब
अरे, रउआ अबकी चुनाए त देतीं
लिखाई, तबे लूर आई लिखे के
मगर रउरा चिचरी पराए त देतीं
मचल आज 'भावुक' के दिल में बा हलचल
हिया में हिया के समाए त देतीं