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लाख रोकीं निगाह चल जाता / मनोज भावुक

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लाख रोकीं निगाह चल जाता
का करीं मन मचल-मचल जाता

राह में बिछलहर बा, काई बा
गोड़ रह-रह फिसल-फिसल जाता

रूप के आँच मन के लागत हीं
साँस लहकत बा, तन पिघल जाता

के तरे गीत गाईं जिनिगी के
हर घड़ी लय बदल-बदल जाता