भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
एह कदर आज बेरोजगारी भइल / मनोज भावुक
Kavita Kosh से
Manojsinghbhawuk (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:51, 29 अक्टूबर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मनोज भावुक }} Category:ग़ज़ल <poem> एह कदर आज बेरोजगारी भ…)
KKGlobal}}
एह कदर आज बेरोजगारी भइल
आदमी आदमी के सवारी भइल
पेट के आग से ई भइल हादसा
केहू डाकू त केहू भिखारी भइल
आग प्रतिशोध के कबले भीतर रहित
आज खंजर, ऊ भोथर कटारी भइल
बात बढ़ते-बढ़त बढ़ गइल एह तरे
एगो लुत्ती लहक के लुकारी भइल
रोजमर्रा के घटना बा, अब देश के
पार्लियामेण्ट में गारा-गारी भइल
एह सियासी मुखौटा के पीछे चलीं
इहवाँ चूहा से बिल्ली के यारी भइल
कौन मुश्किल बा सत्ता के गिरगिट बदे
छन लुटेरा, छने में पुजारी भइल
आम जनता बगइचा के चिरई नियन
जहँवाँ रखवार हीं बा शिकारी भइल
लोग मिल-मिल के ओझल भइल आँख से
जिन्दगी जइसे इक रेलगाड़ी भइल
नाम एके गो गूँजत बा मन-प्रान में
जब से 'भावुक' हो तहरा से यारी भइल