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सब है मगर कुछ नहीं है / केदारनाथ अग्रवाल
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एक हो गए हैं
मौत और जीवन
अस्तित्व और अन अस्तित्व
शून्य के दायरे में
जो हमारे देश की उपलब्धि है
इस युग की सबसे बड़ी अधिकाधिक विज्ञापित
कि सब है
मगर कुछ नहीं है
न आदमी है आदमी
न चीज है चीज
न जड़ है जड़ न चेतन है चेतन
न स्वर है स्वर न संगीत है संगीत
न सृष्टि है सृष्टि न दृष्टि है दृष्टि
टाँय टाँय फिस
रचनाकाल: ०६-१०-१९६७