भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
समरपण / मणि मधुकर
Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:36, 30 अक्टूबर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: <poem>आतमां रै सांच री ज्यूं अणघड़ उछाव नै उजास रै उणियार री ज्यूं धव…)
आतमां रै सांच री ज्यूं
अणघड़ उछाव
नै
उजास रै उणियार री ज्यूं धवळौ
औ हंसौ
चुगै
ऊंडा समंद-सरोवरां रा
मोत्यां बिचला आखर
अर जद
खोलै
आपरा पवनगत पंख
तौ लांघै सिरजण-सामरथ रा
अलंघ-अणसुण्या भाखर!
जिण री मुळक सूं
मिनखापण माथै विसास रा फूल झड़ै
नै दुखां रा दाव मंगसा पड़ै
अगम पंथां रौ
औ एक अळगौ जातरी!
इण ओळियां री ओळखांण साथै
ऐ कवितावां
हेताळू हाथां में!