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द्वन्द्व के बगैर / केदारनाथ अग्रवाल

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है
और नहीं है समय
शून्य में
और नहीं है तात्पर्य
समय का
द्वन्द्व के बगैर
न सृष्टि है
न समय
न कुछ
तात्पर्य बस यही है

रचनाकाल: २८-१२-१९६७