Last modified on 12 नवम्बर 2010, at 09:39

घूस का घोड़ा / केदारनाथ अग्रवाल

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:39, 12 नवम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केदारनाथ अग्रवाल |संग्रह=कुहकी कोयल खड़े पेड़ …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

स्वधर्म हो गया है वेतन का बचाना
ऊपर की आमदनी का पैसा खाना
ज्यादा से ज्यादा नाजायज कमाना
तरह और तरकीब से पकड़ में न आना
क्या खूब है जमाना।
बे लगाम दौड़ता है घूस का घोड़ा
रौंदने से इसने किसी को नहीं छोड़ा
बेकार हो गया है कानून का कोड़ा
रोक नहीं सकता इसे कोई रोड़ा
दम इसने कब तोड़ा।

रचनाकाल: १५-०४-१९६९