Last modified on 13 नवम्बर 2010, at 06:33

थम पंछीड़ा / हरीश बी० शर्मा

Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:33, 13 नवम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: <poem>अरे थम पंछीड़ा ढबज्या देख सूरज रो ताप बाळ देवैलो। बेळू सूं ले स…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

अरे
थम पंछीड़ा
ढबज्या
देख
सूरज रो ताप बाळ देवैलो।
बेळू सूं ले सीख
कै उड बठै तांई
जित्ती है थारी जाण
जित्ती है थारी पिछाण
आमआदमी
जिको नीं जाणै
मांयली बातां
गांव री बेळू ने सोनो
अर पोखरां में चांदी बतावे।
सन् सैंताळिस रै बाद हुया
सुधार गिणावै
नूंवै सूरज री अडीक राखै
अर अंधारो ढोवै।
छापै में छपी खबरां
पढ़ै अर चमकै
बो आम आदमी है।