भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
औ'ळमौ / दीनदयाल शर्मा
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:59, 17 नवम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दीनदयाल शर्मा }} {{KKCatBaalKavita}} <poem> पांच बरसां री बेटी मा…)
पांच बरसां री बेटी मानसी
केठा क्यूं निराज है
घर रै अेक खु'णै में खड़ी
मन्नै देखतांईं फूट पड़ी
पापा, आपरी जोड़ायत नै समझाल्यौ
मन्नै लड़ती रै'वै
घर-घर खेलूं
तो कै'वै पढ
चित्र बणाऊं
तो कै'वै पढ
किणी सूं बात करूं
तो कै'वै पढ
का'णी सुणाण रौ कै'वूं
तो कै'वै पढ
आखै दिन
पढ-पढ'ई क्यूं कै'वै मम्मी
मेरै सूं बात क्यूं कोनी करै मम्मी
समझाल्यौ आपरी जोड़ायत नै
म्हूं होयगी ईं सूं अबै कुट्टी
म्हूं कोनी इण री बेटी।