पांच बरसां री बेटी मानसी
केठा क्यूं  निराज है
घर रै अेक खु'णै में खड़ी
मन्नै देखतांईं फूट पड़ी
पापा, आपरी जोड़ायत नै समझाल्यौ
मन्नै लड़ती रै'वै
घर-घर खेलूं 
तो कै'वै पढ
चित्र बणाऊं 
तो कै'वै पढ
किणी सूं  बात करूं 
तो कै'वै पढ
का'णी सुणाण रौ कै'वूं  
तो कै'वै पढ
आखै दिन
पढ-पढ'ई क्यूं  कै'वै मम्मी 
मेरै सूं  बात क्यूं  कोनी करै मम्मी 
समझाल्यौ आपरी जोड़ायत नै
म्हूं  होयगी ईं सूं  अबै कुट्टी 
म्हूं  कोनी इण री बेटी।