Last modified on 18 नवम्बर 2010, at 12:45

एक दीठ: दो साच!/ कन्हैया लाल सेठिया

आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:45, 18 नवम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कन्हैया लाल सेठिया |संग्रह=लीलटांस / कन्हैया ल…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


एक बगत
अलूणुं ही सही
को तुडावांनी रिपियो
सिझ्यां सुवारै
बिक ज्यासी मूंज
जणां बापर ज्यासी
खुला पईसा।


रिपियो
हाथ रो मैल
करो खुदरा
कीं रै बैठी है लिछमी
पीढ़ो ढ़ाळ‘र
फेर क्यां रो फिकर
खरच रा भाग मोटा !