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एक दीठ: दो साच!/ कन्हैया लाल सेठिया

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एक बगत
अलूणुं ही सही
को तुडावांनी रिपियो
सिझ्यां सुवारै
बिक ज्यासी मूंज
जणां बापर ज्यासी
खुला पईसा।

रिपियो
हाथ रो मैल
करो खुदरा
कीं रै बैठी है लिछमी
पीढ़ो ढ़ाळ‘र
फेर क्यां रो फिकर
खरच रा भाग मोटा !