भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
निलजो दुंद ! / कन्हैया लाल सेठिया
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:42, 25 नवम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कन्हैया लाल सेठिया |संग्रह=लीलटांस / कन्हैया ल…)
लड़ रयो हूं
इकलहत्थो
एक अदीठ जुद्ध
सबदां रै व्यूह में ईं खिण तांई
कोनी बध्यों
चेतणा रो बैरी ‘मैं’
पोथ्यां रै पानां में
बैठा है काळो मूंडो कर‘र
म्हारा हारयोड़ा विचार
मनडै़ री सींव पर ऊबो
हंसै है खाक पिदा‘र
निलजो दुंद !