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निलजो दुंद ! / कन्हैया लाल सेठिया
Kavita Kosh से
लड़ रयो हूं
इकलहत्थो
एक अदीठ जुद्ध
सबदां रै व्यूह में ईं खिण तांई
कोनी बध्यों
चेतणा रो बैरी ‘मैं’
पोथ्यां रै पानां में
बैठा है काळो मूंडो कर‘र
म्हारा हारयोड़ा विचार
मनडै़ री सींव पर ऊबो
हंसै है खाक पिदा‘र
निलजो दुंद !