Last modified on 1 जून 2007, at 15:12

आँसुओं के देश में / महादेवी वर्मा

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:12, 1 जून 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महादेवी वर्मा }} '''काव्य संग्रह [[दीपशिखा / महादेवी वर्म...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

काव्य संग्रह दीपशिखा से

आँसुओं के देश में!
जो कहा रूक-रूक पवन ने
जो सुना झुक-झुक गगन ने,
साँझ जो लिखती अधूरा,
प्रात रँग पाता न पूरा,
आँक डाला लह दृगों ने एक सजल निमेष में!
अतल सागर में जली जो,
मुक्त झंझा पर चली जो,
जो गरजती मेघ-स्वर में,
जो कसकती तड़ित्-उर में,
प्यास वह पानी हुई इस पुलक के उन्मेष में!
दिश नहीं प्राचीर जिसको,
पथ नहीं जंजीर जिसको
द्वार हर क्षण को बनाता,
सिहर आता बिखर जाता,
स्वप्न वह हठकर बसा इस साँस के परदेश में!
मरण का उत्सव है,
गीत का उत्सव का अमर है,
मुखर कण का संग मेला,
पर चला पंथी अकेला,
मिल गया गन्तव्य, पग को कंटकों के वेष में!
यह बताया झर सुमन ने,
वह सुनाया मूक तृण ने,
वह कहा बेसुध पिकी ने,
चिर पिपासित चातकी ने,
सत्य जो दिव कह न पाया था अमिट संदेश में!
खोज ही चिर प्राप्ति का वर,
साधना ही सिद्धि सुन्दर,
रुदन में कुख की कथा हे,
विरह मिलने की प्रथा हे,
शलभ जलकर दीप बन जाता निशा के शेष में!
आँसुओं के देश में!