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आज / मदन गोपाल लढ़ा
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डर भूत सूं
का पछै भूत हुवणै सूं
आज रा नगाड़ा बाजै
आखै जग में
आली माटी सूं
घरमाटिया मांडतै टाबर रो
हरख-उछब
आज है,
अतीत रा ढूंढ़ा
अर भविस रा म्हैल-माळिया
पीड़ रा परनाळा।
अबै हांसणो का रोवणो
आपरै सारू है।